“समता धर्म, शांति धर्म हमारे जीवन में अग्निशामक का कार्य करता है” – आचार्य श्री महाश्रमण जी

“समता धर्म, शांति धर्म हमारे जीवन में अग्निशामक का कार्य करता है” – आचार्य श्री महाश्रमण जी”हम अपनी आत्मा को कर्मों से बचाये रखने में सतत जागरूक रहे” – आचार्य श्री महाश्रमण जी
संजय जैन
दिनांक – 12 अगस्त 2019, सोमवार – कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक) : ABTYP JTN BANGALORE- परम श्रद्धेय अपने पुरुषार्थ से सबको मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ा रहे हैं, यह तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र का सौभाग्य है कि एकादशमाधिशास्ता की सत्य दृष्टि में इस परिसर में युग-युग तक चमके पुण्य प्रेरणा गूँज रही हैं । जिसे सुनने को आतुर हर भक्त गुरु चरण-शरण में जीवन विकास हेतु दौड़ा-दौड़ा आ रहा हैं । आए हुए सभी आगंतकों को समता शांति का संबोध देते हुए पूज्यप्रवर फ़रमा रहे है कि—पदार्थ आकर्षक हो सकते हैं, घृणात्मक भी हो सकते हैं, परंतु पदार्थ में यह ताक़त नही है की आदमी के मन से राग द्वेष का पूर्णतया रखने में सक्षम नही, ये पदार्थ निमित्त तो बन सकते हैं, पर उपादान नही, क्योंकि उपादान और निमित्त हमारे जीवन से जुड़े तार हैं । जिसमें उपादान का महत्व बड़ा और निमित्त का छोटा हैं । मन के विकार का भी हेतु निमित्त हैं, यही बात सम्बोधि के दूसरे अध्याय के छतीसवें श्लोक में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी लिखते है और भगवान महावीर स्वामी द्वारा संबोध प्रदान कर रहे है की पदार्थ न विकार पैदा करते है, न स्वीकार पैदा करते हैं । किंतु जो मनुष्य उनमे आसक्त होते है वह विकार को प्राप्त होता हैं । इसलिए उसके निमित्त से आदमी विकृत चित्त वाला बनता हैं । राग भाव वैराग्य भाव भी पैदा करता है । यह राग भाव भी पदार्थ में निमित्त है,इस बात को पूज्यप्रवर ने दृष्टांत से समझाते हुए बतलाया कि एक बुढ़िया ने अपने बेटे की जीत के लिए मन्नत माँगी और पूरी हो जाने पर कि सन्यासी को भोजन हेतु आमंत्रित किया, पर बेटे ने शर्त रखी की मरा हुआ साधु होगा तो भोजन, अन्यथा नही, इस प्रकार कई साधु आए पर सबको वह बेटा डाँट कर भेज देता, आख़िर में एक सन्यासी आया बेटे ने बहुत ग़ुस्सा किया पर सन्यासी शांत रहा, उसने प्रत्युत्तर नही दिया । यानी की उस साधु में कषाय का भाव या विकृति का भाव नही था और वह समता की साधना में शांति से था । इस संदर्भ में महामना भिक्षु भी हमें एक शिक्षा देते है की कोई हमारे कितने ही अवगुण निकले, हमें हमारे मन में समता रखनी हैं, जैसे एक घास फूस में आग लगे तो पानी का शांत फ़व्वारा उसे बुझा सकता हैं, पर फिर भी आग तो लगती हैं । और वही दूसरी ख़ाली जगह पर आग लगे तो वह फैलती नही और पानी डालने से जल्द बुझ भी जाती हैं । तो यह समता धर्म, शांति धर्म हमारे जीवन में अग्निशामक का कार्य करता हैं तो उस दृष्टांत का सारांश यह है की साधु ने अपने क्रोध पर अपने कषाय पर नियंत्रण रखा । यानी कोई प्रतिक्रिया नही, समता शांति नही तो पाप कर्म के बंध से बच गए । हम अपनी आत्मा को कर्मों से बचाने का प्रयास रखे हर स्थिति में समता महान धर्म-समया धम्म मुदाहरे मुनि । परम पावन फ़रमाते है की समता से बड़ा कोई धर्म नही ।
महात्मा महाप्रज्ञ’ का आख्यान आगे बढ़ाते हुए स्वरचित कृति को अपनी अत्यंत सरलतम शैली में फ़रमा रहे है की श्री महाप्रज्ञ के जीवन की एक महत्वपूर्ण धरोहर हैं, पूज्य श्री कालूगणी के साथ घटित मधुर प्रसंग जिसमें उन्हें करुणा ममता वात्सल्य और आगे बढ़ने की प्रेरणा रही । कालूगणी की जिस पर कृपा रहती, उस पर बहुत अधिक और जिस पर नही या जिनका आचारवान ठीक नही, उनसे रूख भी नही जोड़ते थे ।आज राज्य सभा सांसद IPS के सी राम मूर्ति जी गुरु दर्शनार्थ पधारे । अपने वक्तव्य में श्रद्धा उद्दगार करते हुए कहा की आचार्य श्री आपके यहाँ आने से राज्य का आभामंडल शांति मय बना । इतनी लम्बी यात्रा में आपका अभियान मानवता को समर्पित है। नशामुक्ति अभियान इसने मुख्य हैं । आप बहुत बड़े तपस्वी हैं, भारत की शान है, इसका विकास आपके तपस्वी प्रभाव का कारण है । अहिंसा यात्रा से में बहुत प्रभावित हुआ हूँ, इस कारण युवापीढ़ी भी सजग हुई हैं ।प्रारम्भ के उद्दबोधन में मुनिश्री दिनेश कुमार जी ने बताया कि काल के प्रतिलेखना से क्या होता है। नक्षत्रों के आधार पर छाया के आधार पर काल प्रतिलेखना होती थी । साध्वीवर्या जी ने बताया कि उपाध्याय विनय विजय जी के शांत सुधारस ग्रंथ में बात आती है जो आर्त रौद्र ध्यान करता रहेगा, वह कभी शांत सुधारस का पान नही कर सकता उसके अंदर कभी शांति अंकुरित नही हो सकती ।तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन समापन सत्र आयोजित हुआ। जिसमें महासभा द्वारा चयनित सभाओं का सम्मान किया गया । संचालन महासभा महामंत्री विनोद जी बैद ने किया । चयनित सभाओं की घोषणा महासभा अध्यक्ष हंसराज जी बेताला ने की । आज भी पूज्य प्रवर के सानिध्य में तपस्या के प्रत्याख्यान की झड़ी सी लग गयी, अनेकों मासखमन गतिमान हैं । संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया ।